ये वाकया भी उस समय का है जब मैं सिर्फ १३ साल का था. मुझे नए-नइ शहरों में भटकने का चाव था. भटकते हुए मैं एक दिन पठानकोट पहुंचा. वे कड़क सर्दियों के दिन थे, और उस रोज बरसात भी हुई थी जिससे ठंढ और बढ़ गई थी. घूमते-घूमते रात हो गई, कोई ८ बज चुके थे. रात को कहाँ ठहरूं? होटल में रुकने जितने पैसे नहीं थे. एक दूकान के सामने एक मोटी औरत बैठी थी, उससे मैंने पूछा, “मौसी! मेरे रात काटने का जुगाड़ हो सकता है?” उसने मेरी कद काठी देखी, और बोली, “हो भी सकता है और नहीं भी.” मैंने कहा, “नहीं मत कहो.” वह सोचती रही, फिर कहा – “तो चल मेरे साथ. तेरे को रात बिताना है ना?” “हाँ, मौसी” मैं खुश हो कर बोला.
वह औरत मुझे लेकर एक सेठ के मकान पहुंची. सेठ काफी उमरदार था, बहुत ज्यादा उम्र का; लगभग ७७ बरस का, पर था हट्टाकट्टा, मजबूत. उसका नाम ठगनचंद टंडन था. उसने मेरी और देखा. मैं काफी कमसिन था. तन-बदन मेरा ऐसा कि लड़की के कपड़े पहरा दो तो लड़की दिखूं. मुझे देख सेठ ने अपनी कोठी में मुझे ठहर जाने के लिए हाँ भर दी.
सेठ जी की कोठी बहुत बड़ी थी. वो मेरा हाथ पकड़ मुझे कोठी के भीतर ले गया. मुझसे पूछा – “तूने कुछ खाया, या नहीं?” फिर उसने मुझे खाना खिलाया. उसके बाद वो मुझे ऊपर पहली मंजिल ले गया. यह नौ बजे का समय था. यह जगह शायद सेठ का शयन कक्ष था. बेड बहुत बड़ा था. रजाई, गद्दे, तकिये का अच्छा इंतजाम था. सर्दी बढी हुई थी, अब बरसात भी दुबारा चालू हो गई.
मैं लगभग साढे नौ बजे रजाई में दुबक कर सो गया. लगभग १० बजे मुझे नींद आ गई. कोई घंटा भर हुआ होगा कि मैंने महसूस किया कि जैसे कोई मेरे पीछे आकर सो रहा है. वो सेठ ठगनचंद ही थे. मैं जग चुका था, पर कोई हलचल नहीं की. सेठ मेरे कमसिन बदन से सटने लगा, पीछे से. वह धोती पहने हुए था. अब मैंने हलचल की. धीरे से पूछा – “कौन?” सेठ ने जवाब दिया – “मैं हूँ, सेठ!”. मैं धीरे से बोला – “अच्छा!”. बरसात अभी भी हो रही थी जिससे ठंढ ने जोर पकड़ लिया. ऐसे में सेठ का मेरे बदन से चिपकना मुझे अच्छा लगा. सेठ अब मेरी गांड से अच्छी तरह से चिपक गया था. मुझे उसका गरम-गरम लंड अच्छा लगा.
मैं एक झीना पजामा पहने हुए था, भीतर चड्डी भी. सेठ ने मेरे गाल सहलाए, और फिर वह मेरे पजामे का नाड़ा खोलने लगा. मैंने विरोध नही किया. सेठ ने मेरा पजामा पूरा उतार मेरे बदन से अलग किया. अब मैं सिर्फ चड्डी में था. सस्थ ने भी धोती खोल दी थी. भीतर उसने अन्डरवीयर नह्ही पहना था इसलिए सेठ का नंगा लंड अब मेरी चड्डी से टकराने लगा. सेठ का लौड़ा बहुत लंबा भी था और मोटा भी. वह बार-बार मेरी चड्डी में चुभ रहा था. मुझे बहुत अच्छा लगा तो मैंने खुद ही अपनी चड्डी खोल दी. इस पर सेठ बोला – “वाह, मुन्नू तू तो बहुत होशियार है!!” सेठ ने खुश होकर मेरे गालों को अपने मुंह में भर लिया, मेरे गालों को चूँसने लगा, और साथ-साथ मेरी गांड मारने लगा.
पहली खेप में सेठ का लंड मेरी गांड में तीन इंच ही घुसा. फ़िर ५ इंच. उसने मेरी टांगों और जांघों को चौड़ा किया और घप्प से ८ इंच भीतर तक लंड ठोक दिया. “आह, आह!!!!” मैं जोर से चिल्लाया तो सेठ ने मेरा मुंह दबोच जोर-जोर से मेरी गांड मारना शुरू कर दिया. लगभग आध घंटे उसने मेरा मुंह दबोचे हुए ही मेरी गांड मारी. फिर जब उसे लगा कि अब मैं उसके लंड का झटका अपनी गांड में बर्दाश्त कर लूंगा तो उसने मेरे मुंह से हाथ हटा लिया. इस बीच उसने मेरा कुरता-बनियान सब उतार मुझे मादरजात नंगा कर दिया था. और सेठ भी फुल नंगा था. उसने अब अपना लंड मेरी गांड से निकाल दिया था. लेकिन मैं सेठ से दुबारा गांड मरवाना चाहता था इसलिए मैंने अपना हाथ पीछे कर सेठ का लंड पकड़ लिया और उसे इशारा किया की वो दुबारा से मेरी गांड मारे.
दूसरी खेप खोलने के लिए वो मुझसे बोला – देख मुन्नू, इधर नहीं. उधर एयरकंडीशंड रूम में चलते हैं. सेठ ने तबीयत से मुझे गोद में उठाया और दूसरे रूम ले गया. वहां तेज रोशनी में मैंने सेठ को एकदम नंगा देखा. सेठ बलिष्ट था, उसकी जांघें भारी थीं. पेट थोडा आगे आया हुआ, छाती पर बाल थे. उसका लंड साढ़े नौ इंच का था. अंडकोष बहुत बड़े-बड़े. वह सामने से मेरे बदन पर चढ़ा, और मेरी सपाट छातियों से खेलने लगा. वह अपने हाथों से मेरी कमसिन छाती रगड़ रहा था, फिर जीभ से चाटने लगा.
फिर उसने मेरा लंड देखा, वह काफी कोमल और छोटा था. मैं सेठ के सामने बहुत छोटा था, मुश्किल से १३ का. सेठ मेरे लिए हाथी-जैसा था. सेठ ने मेरे नन्हे लंड को दबाया, और उसे पास के मांस से सटा कर ऊपर नाभि की और दबाया तो वह उसमें धंस गया. सेठ खिल उठा. वह एक आलमारी के पास गया और वहां से सिलिकोन का टेप लाया. कौशल पूर्वक उसने मेरे नन्हे लंड को दुबारा से नाभि के मांस में धंसा कर सिलिकोन का टेप उसपर इस तरह चिपकाया जिससे मेरा नन्हा यौनांग गायब हो बालिका जैसी “चूत” दिखने लगा. सेठ खिल उठा, बोला – “तू तो अब लड़की है!!!!”.
मैं कुछ बोला नहीं पर टुकुर-टुकुर सेठ के मोटे ताज़े लंड की और देखे जा रहा था. सहसा सेठ ने मेरी ठुड्डी उंची की, फिर मेरा मुंह खोला, उसमें अपनी हथेली दबा उसे चौड़ा किया, और मुझे इशारा किया कि मैं सेठ का लौड़ा अपने मुंह में भर लूँ. मैं भी लड़की की तरह नखरे कर सेठ ठनकचंद टंडन का टनटनाया उआ लंड धड़ल्ले से चुन्सने लगा. जैसे जिसमें उनका मोटा व्यभिचारी लंड चूँसे जा रहा वैसे वैसे सेठ मीठी आह भर रहे थे. उसके बाद मैंने सेठ का अंडकोष भी चूँसा. सेठ इतने भर से नही माना. आखिर में मुझे उसने कहह की मैं उसकी गांड का छेद अपनी जीभ से जी भर कर चुन्सू.
इस सबके बाद सेठ ने दूबारा से मेरी गांड मारना शुरू किया. इस बार पहले उसने मेरी गांड में दो या तीन अंगुलियाँ घुसाई, फिर हथेली, और फिर अपना लंड. मेरी कोमल गांड में ९ इंच तक सेठ का लौड़ा घोड़ा जैसा दौड़ा.
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